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Wednesday, February 13, 2013

धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो


धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो 
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर की दर--दीवार सजा कर देखो

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या मिले हाथ बढा़ कर देखो 
Nida Fazli

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